साकार हुआ सपना तेरा अब भी श्रमदान कर रही हूॅं। साकार हुआ सपना तेरा अब भी श्रमदान कर रही हूॅं।
"मैं" और वो "मैं" और वो
इश्क़ था तो वफ़ा की दरकार भी थी मैं गुनाह सा रहा और वो सज़ा हो गई इश्क़ था तो वफ़ा की दरकार भी थी मैं गुनाह सा रहा और वो सज़ा हो गई
पिता के साए में घर महफूज़ लगता है हर मुश्किल को जाने कब वो खुद ही झेल लेता है, पिता के साए में घर महफूज़ लगता है हर मुश्किल को जाने कब वो खुद ही झेल लेता ह...
बस एक सवाल उठा है ज़ेहन में अब, क्या वो मैं था या हूँ मैं अभी। बस एक सवाल उठा है ज़ेहन में अब, क्या वो मैं था या हूँ मैं अभी।
ना जाने क्यूँ, ऐ मेरे दोस्त वो समझ नहीं पायें। ना जाने क्यूँ, ऐ मेरे दोस्त वो समझ नहीं पायें।